HINDI MURLI 03-04-2023

03-04-2023 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे – बाप आये हैं तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र देने, जिससे तुम सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जान बुद्धिवान बने हो”

प्रश्नः-
आत्मा और शरीर दोनों को पवित्र बनाने तथा राजाई पद का अधिकार लेने की सहज विधि क्या है?

उत्तर:-
तुम्हारे पास देह सहित जो भी पुराना कखपन है उसे एक्सचेन्ज करो। बाप के हवाले कर दो। पूरा बलि चढ़ो, बाप को ट्रस्टी बनाओ। श्रीमत पर चलते रहो तो आत्मा और शरीर दोनों पवित्र बन जायेंगे। राजाई पद प्राप्त हो जायेगा। जनक भी बलि चढ़ा तो उनको जीवनमुक्ति मिली, तुम बच्चे भी बाप को वारिस बनाओ तो 21 जन्मों का अधिकार मिल जायेगा।

गीत:-
नयनहीन को राह दिखाओ प्रभु…

ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना। यह भक्त भगवान को पुकारते हैं। भगवान को पूरा न जानने के कारण मनुष्य कितना दु:खी हैं। कितना माथा मारते रहते हैं, भक्ति मार्ग में। सिर्फ इस जन्म की बात नहीं। जब से भक्ति मार्ग शुरू हुआ है तब से धक्के खाते रहते हैं। भारत में ही पूज्य देवी-देवताओं का राज्य था, जिसको स्वर्ग सचखण्ड कहा जाता था। अब भारत झूठ खण्ड है। भारत की महिमा बड़ी जबरदस्त है क्योंकि भारत परमपिता परमात्मा का बर्थप्लेस है। उसका असुल नाम शिव ही है। शिव जयन्ती मनाते हैं। रूद्र वा सोमनाथ जयन्ती नहीं कहा जाता है। शिव जयन्ती वा शिवरात्रि कहा जाता है। अब सभी नयनहीन, बुद्धिहीन हैं क्योंकि सबमें 5 विकार प्रवेश हैं। रावण ने नयनहीन और बुद्धिहीन बनाया है, एक दो को दु:ख देते रहते हैं। भारत जब स्वर्ग था तो दु:ख का नाम नहीं था। स्वर्ग की स्थापना करने वाला है हेविनली गॉड फादर। अभी सब भक्तों का भगवान तो जरूर एक होना चाहिए ना। सभी नयनहीन हैं अर्थात् ज्ञान के चक्षु वा डिवाइन इन्साइट नहीं है। भगवानुवाच मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। श्रीमत भगवत गीता है मुख्य। श्री अर्थात् श्रेष्ठ मत से अब तुमको बुद्धिवान बनाया जाता है। दिव्य चक्षु अर्थात् ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं। वास्तव में ज्ञान का तीसरा नेत्र तुम ब्राह्मणों को मिलता है, जिससे तुम बाप को और बाप की रचना के आदि, मध्य, अन्त को जान जाते हो।

इस समय सर्वव्यापी हैं – देह अहंकार वा 5 विकार, इसलिए सभी घोर अन्धियारे में हैं। तुम बच्चों के पास रोशनी है। तुम्हारी आत्मा सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जान गई है। आगे तुम सब अज्ञान में थे, ज्ञान अन्जन सतगुरू दिया, अज्ञान अन्धेर विनाश.. जो पूज्य थे वही फिर पुजारी बन पड़े हैं। पूज्य हैं रोशनी में, पुजारी हैं अन्धेरे में। परमात्मा को आपेही पूज्य, आपेही पुजारी नहीं कह सकते। वह तो है ही परमपूज्य, सबको पूज्य बनाने वाला। उनको कहा जाता है परम पूज्य परमपिता परमात्मा। कृष्ण को थोड़ेही ऐसे कहेंगे। उनको सब गॉड फादर नहीं कहेंगे। निराकार गॉड को ही सब गॉड फादर कहते हैं। है वह भी आत्मा, परन्तु परम है इसलिए उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। आत्मा और परमात्मा का रूप एक ही है। जरूर हम आत्मा हैं, वह परम आत्मा सदैव परमधाम में रहने वाला है। अंग्रेजी में उनको सुप्रीम सोल कहा जाता है। बाप कहते हैं तुम गाते भी हो आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. ऐसे नहीं परमात्मा, परमात्मा से अलग रहे बहुकाल। नहीं। पहले नम्बर का अज्ञान है आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा कहना। आत्मा तो जन्म-मरण में आती है। परमात्मा थोड़ेही पुनर्जन्म में आते हैं। बाप बैठ समझाते हैं तुम भारतवासी स्वर्गवासी, पूज्य थे। यह सारी ईश्वरीय फेमिली हो गई ना। अच्छा, भला यह तो बताओ तुम मात-पिता किसको कहते हो? यह कौन कहते हैं? आत्मा कहती है तुम मात-पिता… तुम्हरी कृपा से स्वर्ग के सुख घनेरे.. हमको स्वर्ग में मिले हुए थे। तुम मात-पिता आकर स्वर्ग की स्थापना करते हो, तो हम आपके बच्चे बनते हैं। बाप कहते हैं मैं संगम पर ही आकर राजयोग सिखलाता हूँ नई दुनिया के लिए।

बाप आकर समझाते हैं तुम मुझे भूल गये हो। मेरी तो शिवजयन्ती भी भारत में मनाते हो ना। गाया भी जाता है शिवरात्रि। कौन सी रात्रि? यह ब्रह्मा की बेहद की रात है। संगम पर आकर रात से दिन अर्थात् नर्क से स्वर्ग बनाते हैं। शिवरात्रि के अर्थ का भी कोई को पता नहीं है। भगवान है निराकार। मनुष्यों के तो जन्म बाई जन्म शरीर के नाम बदलते हैं। परमात्मा कहते हैं मेरा शारीरिक नाम ही नहीं है। मेरा नाम शिव ही है। मैं सिर्फ बूढ़े वानप्रस्थ तन का आधार लेता हूँ। यह पूज्य था, अब पुजारी बना है। शिवबाबा आकर स्वर्ग रचते हैं। हम उनके बच्चे हैं तो जरूर हम स्वर्ग के मालिक होने चाहिए ना। वह शिवबाबा है ऊंचे ते ऊंचा। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का पार्ट अपना-अपना है। हरेक एक्टर का पार्ट अपना है। हर एक आत्मा में अपना सुख का पार्ट नूँधा हुआ है। बाप कल्प-कल्प आकर भारतवासियों को स्वर्गवासी बनाते हैं, उसको भूल गये हैं। कहते हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ। अरे अब तो नर्क है तो पुनर्जन्म जरूर नर्क में ही लेंगे ना। तो फिर तुम उनको नर्क का भोजन क्यों खिलाते हो! स्वर्ग में तो अथाह वैभव हैं। फिर उनकी आत्मा को मँगाकर नर्क का भोजन क्यों खिलाते हो! पतित ब्राह्मण को खिलाते हो, प्याज़ आदि खिलाते हो। वहाँ थोड़ेही यह होता है। तो देखो भारत की क्या हालत हो गई है! भगवानुवाच – अब मैं तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र देता हूँ। तुम फिर से राजाओं का राजा बनेंगे। देवी-देवतायें 84 जन्म भोग पूज्य से पुजारी बन गये हैं। तुम जानते हो हम शिव-बाबा के वारिस बने थे। शिवबाबा ने स्वर्गवासी बनाया था तब उनको सब याद करते हैं। ओ गॉड फादर रहम करो। साधू भी साधना करते हैं क्योंकि यहाँ दु:ख है तो निर्वाणधाम जाना चाहते हैं। आत्मा परमात्मा में लीन तो होती नहीं। यह समझना भूल है। अब तुम कहते हो हम आत्मा परमधाम में रहने वाली हैं। हम आत्मा सो देवी-देवता कुल में आयेंगी, फिर 84 जन्म भोगेंगी। हम सो आत्मा फिर दैवी कुल, क्षत्रिय कुल से वैश्य, शूद्र कुल में आयेंगे। शिवबाबा जन्म-मरण में नहीं आते, सिर्फ आकर भारत को स्वर्ग बनाते हैं। गाया भी जाता है सतयुग में सूर्यवंशी श्री लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी थी। जैसे क्रिश्चियन घराने में एडवर्ड दी फर्स्ट, एडवर्ड दी सेकेण्ड, थर्ड चलता है। वैसे ही वहाँ भी लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, लक्ष्मी-नारायण दी सेकेण्ड, थर्ड ऐसे 8 डिनायस्टी चलती हैं। अभी तुम ब्राह्मणों का तीसरा नेत्र खुला है। बाप बैठ आत्माओं से बात करते हैं। तुम ऐसे 84 का चक्र लगाकर इतने-इतने जन्म लेते आये हो। वर्णों का भी एक चित्र बनाते हैं जिसमें देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनाते हैं। अब तुम जानते हो हम सो ब्राह्मण चोटी हैं। इस समय हम हैं ईश्वरीय औलाद प्रैक्टिकल में। इस समय राजयोग और ज्ञान से हमको सुख घनेरे मिलते हैं। कोई तो सूर्यवंशी राजा रानी का वर्सा लेते हैं, कोई चन्द्रवंशी का। सारी किंगडम स्थापन हो रही है। हर एक अपने पुरुषार्थ से वह पद पायेंगे। कोई अगर पूछे कि अभी पढ़ते-पढ़ते हमारा शरीर छूट जाये तो क्या पद मिलेगा? तो बाबा बतला सकते हैं। योग से ही आयु बढ़ती है, विकर्म विनाश होते हैं। और कोई उपाय पतित से पावन बनने का है नहीं। पतित-पावन कहने से ही भगवान याद आता है। भगवान है कौन – यह नहीं जानते। बाप कहते हैं मैं आता ही भारत में हूँ, यह मेरा बर्थ-प्लेस है। सोमनाथ का मन्दिर कितना आलीशान था! यह बाप ही बच्चों को समझाते हैं, जिसके फिर बाद में शास्त्र बनते हैं। भक्ति मार्ग में ही यह यादगार बनना शुरू होते हैं। जब पुजारी बनते हैं तो पहले-पहले सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं। भारत तो सतयुग त्रेता में बहुत साहूकार था। मन्दिरों में अथाह धन था। भारत हीरे तुल्य था, अब तो कंगाल कौड़ी तुल्य है। फिर बाप आकर भारत को हीरे तुल्य बनाते हैं। सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है। बाप कहते हैं अपनी शक्ल तो देखो, लक्ष्मी-नारायण को वरने लायक हो। नारद की कहानी है ना। पतित आत्मा पवित्र लक्ष्मी अथवा नारायण को कैसे वर सकेगी? विकार में गये तो फिर पासपोर्ट कैन्सिल हो जाता है। अपने आप को देखा जाता है, कि हम ऐसा पुरुषार्थ करते हैं जो बाबा मम्मा के गद्दी-नशीन बन सके। यह है ही पतित दुनिया। पवित्रता है मुख्य। अब तो नो हेल्थ, नो वेल्थ, नो हैप्पीनेस। यह रूण्य के पानी मिसल (मृगतृष्णा) राज्य है। इस पर भी दुर्योधन की कहानी शास्त्रों में है। दुर्योधन विकारी को कहा जाता है। द्रोपदी कहती है हमारी लाज़ रखो। यह द्रोपदियाँ हैं ना। बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं, जितना बुद्धि योग पूरा लगा हुआ होगा तो धारणा भी होगी। नॉलेज ब्रह्मचर्य में ही पढ़ी जाती है। बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमलफूल समान रहना है। दोनों तरफ निभाना है, मरना भी जरूर है। मरने समय मनुष्यों को मंत्र देते हैं। बाप कहते हैं तुम सब मरने वाले हो। मैं कालों का काल सबको वापिस ले जाने वाला हूँ, तो खुशी होनी चाहिए ना। फिर जो अच्छी रीति पढ़ेंगे वह स्वर्ग के मालिक बनेंगे। नहीं पढ़ेंगे तो प्रजा पद पायेंगे। यहाँ तुम आये हो राज्य पद पाने। यह पढ़ाई है, इसमें अन्धश्रद्धा की बात नहीं। यह पढ़ाई है राजाई के लिए। जैसे उस पढ़ाई की एम आब्जेक्ट है, बैरिस्टर बनेगा तो योग जरूर पढ़ाने वाले टीचर से रखना पड़े। यहाँ तुमको भगवान पढ़ाते हैं तो उनसे योग लगाना है।

बाप कहते हैं मैं परमधाम बहुत दूर दूर से आता हूँ। परमधाम कितना ऊंच है। सूक्ष्मवतन से भी ऊंच है। वहाँ से आने में मुझे एक सेकेण्ड लगता है। उनसे तीखा और कुछ हो नहीं सकता। सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देता हूँ। जनक का मिसाल है ना। अभी तो नर्क पुरानी दुनिया है। नई दुनिया स्वर्ग को कहा जाता है। बाप नर्क का विनाश कराए स्वर्ग की स्थापना कराते हैं। बाकी उनको सर्वव्यापी कहने से क्या मिलेगा? कुछ भी नहीं। बाप तो आकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। बाकी सभी आत्मायें शान्तिधाम चली जायेंगी। आत्मा अमर है, उसको पार्ट भी अमर मिला हुआ है। फिर आत्मा छोटी-बड़ी कैसे हो सकती! आत्मा है ही स्टार। बड़ी-छोटी हो न सके। अब तुम हो गॉड फादरली स्टूडेंट्स, गॉड फादर नॉलेजफुल, ब्लिसफुल है। वह तुमको पढ़ा रहे हैं। तुम जानते हो इस पढ़ाई से हम सो देवी-देवता बनेंगे। तुम भारत की सेवा कर रहे हो। पहले-पहले तो बाप का बनना है और जगह तो गुरू के पास जाते हैं, उनके बनते हैं अथवा उसे अपना गुरू बनाते हैं। यहाँ तो है बाप। तो पहले बाप का बच्चा बनना पड़े। बाप बच्चों को अपनी जायदाद देते हैं। बाप कहते हैं बच्चे तुम एक्सचेन्ज करो। तुम्हारा कखपन हमारा, हमारा सब कुछ तुम्हारा। देह सहित जो कुछ है वह सब कुछ मेरे को दो, मैं तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों को पवित्र बना दूँगा और फिर राजाई पद भी दूँगा। तुम्हारे पास जो कुछ है वह बलि चढ़ो। मुझे ट्रस्टी बनाओ, मेरी श्रीमत पर चलो। जनक राज्य-भाग्य सहित बलि चढ़ा तो उनको जीवनमुक्ति मिली। बाबा यह सभी कुछ आपका है। बाप कहते हैं मुझे वारिस बनाओ, मैं 21 जन्म तुमको वारिस बनाता हूँ। सिर्फ मेरी मत पर चलो। भल धन्धा करो, विलायत जाओ, कुछ भी करो, सिर्फ मेरी मत पर चलो। खबरदार रहना है। माया घड़ी-घड़ी पछाड़ेगी। विकर्म कोई नहीं करना है। कदम-कदम श्रीमत पर चलना है तो तुम श्रेष्ठ बनेंगे। बाप तो दाता है, सिर्फ तुमको ट्रस्टी बनाते हैं। कहते भी हो यह बच्चे, धन आदि सब भगवान का दिया हुआ है। अब भगवान कहते हैं मुझे दो। मैं एक्सचेन्ज करता हूँ। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ – श्रीमत पर चलने से तुमको ऐसा श्रेष्ठ बनाऊंगा। यह है राजयोग। यह लक्ष्मी-नारायण भी इस राजयोग से ऐसे बने हैं। बिड़ला जिसने लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बनाया है, वह खुद नहीं जानते हैं कि यह लक्ष्मी-नारायण इतने धनवान कैसे बनें! अब बाप समझाते हैं – यहाँ के गरीब वहाँ साहूकार बनेंगे और साहूकारों का सब मिट्टी में मिल जायेगा। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मात-पिता के गद्दी नशीन बनने के लिए पवित्रता की धारणा करनी है। दोनों तऱफ निभाते हुए पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है।

2) कोई भी विकर्म नहीं करना है। बहुत खबरदार हो श्रीमत पर चलते रहना है। ट्रस्टी जरूर बनना है।

वरदान:-
अपने मस्तक बीच सदा बाप की स्मृति इमर्ज रखने वाले मस्तकमणि भव

मस्तकमणि अर्थात् जिसके मस्तक में सदा बाप की याद रहे, इसी को ही ऊंची स्टेज कहा जाता है। अपने को सदा ऐसी ऊंची स्टेज पर स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्मा समझ आगे बढ़ते रहो। जो इस ऊंची स्टेज पर रहते हैं वह नीचे की अनेक प्रकार की बातों को सहज पार कर लेते हैं। समस्यायें नीचे रह जाती हैं और स्वयं ऊपर हो जाते। मस्तकमणि का स्थान ही ऊंचा मस्तक है इसलिए नीचे नहीं आना, सदा ऊपर रहो।

स्लोगन:-
बेफिक्र बादशाह की स्थिति का अनुभव करना है तो मेरे को तेरे में परिवर्तन कर दो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top